500 और 1000 के नोटों को वापस लेने के बाद अब मोदी सरकार एक और बड़ा कदम उठाने जा रही है। पॉलीमर करेंसी यानी प्लास्टिक नोट लाने पर विचार किया जा रहा है। जी हां प्लास्टिक के नोट... अभी तक आपने प्लास्टिक मनी (क्रेडिट और डेबिट कार्ड) के बारे में सुना होगा, अब सरकार वाकई प्लास्टिक नोट छापेगी। सरकार ने आज ये जानकारी संसद में दी है। वित्त राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक सवाल के लिखित जवाब में लोकसभा को बताया कि प्लास्टिक या पॉलिस्टर की परत वाले बैंक नोटों की छपाई का फैसला लिया गया है। मटीरियल की खरीद की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अगर सरकार अपने इस कदम में कामयाब होती है तो भारत दुनिया के उन गिने चुने देशों में शामिल हो जाएगा जहां प्लास्टिक नोट का चलन है। भारत से पहले 17 देशों में इस प्लास्टिक करेंसी को सफलता पूर्वक चलन में लाया जा चुका है। आइए जानते हैं क्या खासियत है पॉलीमर करेंसी या प्लास्टिक नोटों की-
- आरबीआई फील्ड ट्रायल के बाद प्लास्टिक करेंसी नोट लॉन्च करने की योजना पर काम कर रहा है।
- फरवरी 2014 में सरकार ने कहा था 10 रुपए के एक अरब प्लास्टिक के नोट उतारे जाएंगे।
- प्लास्टिक नोटों को फील्ड ट्रायल के लिए पांच शहरों में चलाया जाएगा।
- इन शहरों का चयन भौगोलिक और जलवायु विविधता के आधार पर किया गया।
- फील्ड ट्रायल के लिए कोचि, मैसूर, जयपुर, शिमला और भुवनेश्वर चुने गए थे।
कैसी होती है पॉलीमर करेंसी या प्लास्टिक नोट
- प्लास्टिक से तैयार नोट पेपर नोट की तुलना में ज्यादा साफ होते हैं।
- प्लास्टिक के नोट का मतलब ये नहीं कि वो हार्ड प्लास्टिक के होंगे।
- ये नोट पॉलीमर के होंगे जो आम नोट की तरह फोल्ड किए जा सकते हैं।
- नोट बनाने के लिए पॉलिमर बाईएक्जिएली-ओरिएंटेड पॉलीप्रोपीलीन का इस्तेमाल किया गया।
- इससे नोट की न सिर्फ आयु बढ़ी बल्कि यह ज्यादा चमकदार और मजबूत हो गया।
- प्लास्टिक के नोटों की औसत उम्र करीब पांच साल होती है।
- पेपर के नोटों की तुलना में दो गुना से ज्यादा चल सकते हैं।
- हालांकि कागज के एक नोट की लाइफ 10 साल मानी जाती है।
- लेकिन लेन-देन से इसकी लाइफ 3 से 5 साल तक ही रह जाती है।
- प्लास्टिक नोटों की नकल उतारना भी आसान नहीं होता।
- पेपर वाले नोट की तुलना में प्लास्टिक नोट ग्लोबल वार्मिंग कम करते हैं।
- प्लास्टिक वाले नोटों का वजन पेपर वाले नोटों की तुलना में कम होता है।
- प्लास्टिक नोटों का ट्रांस्पोर्टेशन और डिस्ट्रीब्यूशन भी आसान होता है।
- प्लास्टिक नोटों का पानी में गलेंगे, न ही मुड़ने और फटने का डर रहता है।
- RBI को हर साल दो लाख करोड़ के गंदे, कटे-फटे नोट हटाने पड़ते हैं।
- औसतन प्रत्येक पांच में से एक नोट हर साल अर्थतंत्र से हटाना पड़ता है।
- 2012 तक इस तरह के गंदे कटे-फटे करीब 13 अरब नोट समाप्त किए गए।
सुरक्षा का विशेष इंतजाम...
- पॉलीमर नोटों में सुरक्षा सम्बंधी फीचर अंकित होता है जिसकी नकल उतार पाना लगभग नामुमकिन है।
- इसके अलावा कई किस्म के सुरक्षा मानक होते हैं जिन्हें आसानी से न ही फोटोकॉपी किया जा सकता है।
- पॉलीमर नोटों की स्कैनिंग के जरिए नकल नहीं की जा सकती है।
- इन नोटों की छपाई के लिए इनटेगलियो, ऑफसेट और लेटर प्रिंटिंग जैसी तकनीक का सहारा लिया जाता है।
- नोट में चित्र बनाने के लिए लेटेंट इमेज, माइक्रो प्रिंटिंग और इंट्रीकेट बैकग्राउंड का इस्तेमाल किया जाता है।
- पॉलिमर नोटों में अलग-अलग रंगों का इस्तेमाल होता है, इसका एक हिस्सा एक रंग का तो दूसरा दूसरे रंग का होता है।
- इसमें कागज के नोट की तरह वॉटरमार्क भी होता है।
- पॉलिमर नोट में शेडो इमेज बनाने के लिए ऑप्टीकली वेरिएबल इंक का इस्तेमाल किया जाता है।
- इन तमाम सुरक्षा मानकों के चलते पॉलिमर नोट को नकली नोट के रूप में छापना आसान नहीं है।
क्या है पॉलीमर, जिससे बने है प्लास्टिक नोट...
- पॉलीमर प्राकृतिक और सिंथेटिक यानी मानव निर्मित हो सकता है।
- प्लास्टिक एक किस्म के पॉलीमर होता है।
- पॉलीमर को तो आम प्लास्टिक की तरह तोड़ना मुश्किल होता है।
- नायलॉन, प्लास्टिक, बरसाती कोट पॉलीमर से ही बने होते हैं।
- सेल्यूलोज, लकड़ी, रेशम, त्वचा, रबर आदि प्राकृतिक पॉलीमर हैं
- इसके अलावा सिंथेटिक पॉलीमर मानव निर्मित होते हैं इन्हें बनाया जाता है।
- प्लास्टिक, पाइपों, बोतलों, बाल्टियों पोलीथिन सिंथेटिक पॉलीमर है।
- बिजली के तारों, केबिलों के ऊपर चढ़ाई जाने वाली प्लास्टिक भी सिंथेटिक पॉलीमर है।
- सिंथेटिक रबर भी पॉलीमर है जिससे मोटरगाड़ियों के टायर बनाए जाते हैं।
कब चलन में आए प्लास्टिक नोट...
- नकली नोटों की समस्या से निपटने के लिए पहली बार पॉलीमर नोट ऑस्ट्रेलिया में पेश किए गए थे।
- ऑस्ट्रेलिया मे 1980 में पॉलीमर करेंसी पर काम करना शुरु हुआ, 1992 में जाकर चलन में आया।
- रिजर्व बैंक ऑफ आस्ट्रेलिया द्वारा विकसित किए गए पॉलिमर बैंकनोट आज दुनिया के कई देशों में लोकप्रिय हो चुके हैं।
- ऑस्ट्रेलिया में जैसे ही दस डॉलर का पॉलिमर नोट आया आम जनता के बीच लोकप्रिय हो गया।
- इसके बाद रिजर्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया ने 20 और 50 डॉलर के कागज के नोट को बदल कर पॉलिमर कर दिया।
- आस्ट्रेलिया में इस करेंसी को सुचारु रूप से चलाने के लिए वर्ष 1988 में करेंसी के रूप में प्रस्तुत किया।
- कॉमनवेल्थ साइंटफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गेजाइजेशन और यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न ने पहली बार इस्तेमाल किया गया।
- पहली बार इन नोटों को बनाने के लिए पॉलिमर बाईएक्जिएली-ओरिएंटेड पॉलीप्रोपीलीन का इस्तेमाल किया गया।
- इससे नोट की न सिर्फ आयु बढ़ी बल्कि यह आम नोट के मुकाबले ज्यादा चमकदार और मजबूत हो गए।
- शुरुआती दिनों में पॉलिमर नोट की छपाई में कई परेशानियां आयीं।
- लेकिन समय और तकनीक के साथ नोट छापने के लिए पॉलीएथिलीन फाइबर का इस्तेमाल होने लगा।
- इस फाइबर को अमेरिकन बैंक नोट कम्पनी ने 1980 में लांच किया था।
- 2014 से ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, कनाडा, न्यूजीलैंड, पापुआ न्यूगिनी, रोमानिया और वियतनाम में ये नोट चलन में हैं।
- इसके बाद सिंगापुर, मलेशिया, फिजी, चिली, बरमुडा, निकारागुआ, मालदीव, श्रीलंका और हांगकांग में पॉलीमर नोट प्रचलन में आए।
- सितंबर 2016 में युनाइटेड किंगडम यानी ब्रिटेन में भी इस करेंसी को लाया।
- ब्रिटेन में सितंबर में शुरू किए गए पांच पाउंड के नए नोट के कई लोग दीवाने हो गए हैं।
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